साइटों पर काम की हालात देखने वाला कोई नहीं, न स्वीकृत साइज या वजन का पत्थर ओर तारें भी लग रही तो जंग लगी
जगाधरी। सिंचाई विभाग बाढ़ से जंग लड़ने की तैयारी तो कर रहा है मगर जंग लगी तारों से। पथराला नदी मेंं पिरथीपुर से अपस्ट्रीम में राजपुर की साइट पर जो काम चल रहा है वहां पर इस कदर जंग लगी तारों का इस्तेमाल हो रहा है जैसे तारें कहीं विदेशों से आयात होनी है ओर इस समय आयात का समय नहीं है। अर्थमूवर मशीनों की सहायता से छोटे-मोटे पत्थर जंग लगी तारों में भरे जा रहे है कि जैसे-तैसे काम पूरा हो जाए चाहे वह काम पानी के आगे एक दिन भी टिक न पाए। कहीं पर काम चालू नहीं हुए तो जहां पर हो रहे है वहां पर हालात ऐसे कि काम नहीं जैसे एहसान हो रहा है।
इस बाढ़ सीजन में सिंचाई विभाग में दूरदर्शिता या किसी योजना की कमी स्पष्ट रुप से सामने आने लगी है। कई साइटों पर काम बिल्कुल बंद है वहां पर काम चालू कर दिया जहां वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट से मंजूरी नहीं ली, बाद में काम बंद करना पड़ा ,तो कई जगह पत्थर पूरा न होने की वजह से काम चालू नहीं हो पाया तो कहीं पर काम चालू हो गया मगर मानसून की एक- दो बारिश से ही काम बंद हो गया। अब पिछले कई दिन से मौसम लगभग सामान्य है ऐसे में जो काम चल रहे वहां की हालात ऐसी है कि विभाग से जवाब देते नहीं बन रहा।
पिरथीपुर में जिस साइट पर काम चालू नहीं हुआ, वहां से थोड़ा आगे उसी नदी में चले तो राजपुर में जो काम चल रहा है वह ऐसा लगता है कि बस पेकअप करना है। छोटे-मोटे पत्थर तारों के जाल में जेसीबी की सहायता से भरे जा रहे हैं। तारें भी ऐसी कि जैसे किसी कबाड़ में खरीदी गई हों, यानी बुरी तरह से जंग खाई हुई। ऐसी तारों में आखिर पत्थर कितना समय टिक पाएगा। मजेदार बात है कि लाखों करोड़ों के इन कामों की देख-रेख का जिम्मा सिंचाई विभाग का है, मौके पर जेई या अन्य कर्मचारी होना जरुरी है मगर सिवाय लेबर के मौके पर कोई नहीं होता। ऐसे में आखिर जंग लगी तार से बाढ़ से जंग कैसे जीती जा सकती है।
इस बारे में सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता विनोद कुमार से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह जेई को मौके पर भेज कर चेक करवाते हैं।