गुमथला, यमुनानगर। रात का अंधेरे में यमुना के सीने को चीरती पोकलाइन, अर्थमूवर मशीनें नियम कानूनों के चीथड़े उड़ा खनन का काम यदि देखना हो तो यह जठलाना-गुमथला एरिया में आसानी से देखा जा सकता है।रात के समय यमुना में खनिज खनन का कार्य नहीं किया जा सकता। मगर यहां पर रात का अंधेरा हो या दिन का उजाला 24 घंटे यह खेल चल रहा है। हालांकि यमुनानगर में यह हालत तो ईस्ट, नार्थ, साउथ सब जगह है मगर इस एरिया में जिस तरह से पूरे सिस्टम को चेलेंज कर खेल खेला जा रहा है वह अलग ही सवाल खड़े कर रहा है।
जठलाना-गुमथला क्षेत्र में अवैध खनन व ओवरलोड के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट वरयाम सिंह का कहना है कि नियमानुसार सूर्यास्त के बाद व सूर्यउदय से पहले यमुना नदी में अवैध खनन नहीं किया जा सकता है। मगर यहां पर तो खनिज खनन का कभी सूर्यास्त नहीं होता है। यमुना के बीच बहते पानी में जिस प्रकार पोकलाइन मशीनें उतार दी जाती है उससे लगता है कि या तो कोई नियम है नहीं या उसमें इतनी हिम्मत नहीं कि इस खेल को रोक सके। यह खनन भी ऐसे एरिया में हो रहा है जहां पर संबधित एजेंसी का काम अभी बंद पड़ा है।
ग्राउंड जीरो से मुख्यालय की दूरी चंद मिनटों है वहां पर अधिकारी बैठे है, जिनके पास कानून की वह पावर है जिससे वह कार्रवाई कर सकें, मगर यहां तक कोई पहुंच पाए। ऐसा संभव नहीं लगता। अचानक किसी रेड पड़ने पर नदी के बीच से डंपर, ट्रालियां, अर्थमूवर मशीनों को फिर भी निकाला जा सकता है मगर पोकलाइन को एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट करना आसान नहीं है। इसके बावजूद बीच यमुना के इन मशीनों को इतनी तसल्ली से काम करते देखाा जा सकता है जैसे उनको पता हो, यहां कोई नहीं आएगा। खान व भूविज्ञान विभाग कहने को एक विभाग है मगर यहां पर न तो खनन अधिकारी न ही कोई इंसपेक्टर न ही कोई माइनिंग गार्ड पहुंच पाता है।
सिंचाई विभाग की पूरी जिम्मेदारी, मगर वह भी चुप्प
यमुना नदी के एरिया में किसी भी तरह रुल्स का वायलेशन होने पर सिंचाई विभाग की पूरी जिम्मेदारी उसको रोकने की है। वह भी इस पर कार्रवाई कर सकते हैं, मगर यह विभाग तो केवल क्रेट वायर, सीसी स्टड या अन्य कामों तक सीमित है। जबकि इस मामले में पूरे अधिकार संबधित एसडीओ को दिए गए हैं। इस मामले में पूरी जवाबदेही इस विभाग की भी है, लेकिन कोई जवाब मांगे तब तो जवाबदेही बने। कोई पूछने वाला ही नहीं है।
एडवोकेट वरयाम सिंह का कहना है कि पिछले लगभग एक दशक में हालात बद से बदतर हो गए हैं। केवल जिसकी लाठी उसकी भैंस का खेल चल रहा है। पर्यावरण को लेकर तमाम नियम है जो खनन एजेंसियों के अलावा खनिज व्यवसाय पर लागू होते है, क्या कोई यह मान सकता है कि यह काम बिना जानकारी के चल रहा होगा।





