अंबाला। ऐतिहासिक मां गंगे सावन जोत हमारी आस्था का विषय ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी है। वर्तमान पाकिस्तान के मुल्तान से वर्ष 1911 में शुरू हुई सावन जोत की परम्परा पंजाबी समाज की समृद्ध संस्कृति का परिचायक है, जो हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है। राष्ट्रीय पंजाबी महासभा के नेशनल प्रेजीडैंट एवं हरियाणा के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त अशोक मेहता ने यह बात रविवार शाम को श्री मां गंगे सावन जोत महोत्सव के अंतिम पड़ाव में देवनगरी हरिद्वार में निकाली गई भव्य शोभायात्रा के दौरान मुख्य अतिथि के तौर पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। हरिद्वार में सूखी नदी भूपतवाला के पास स्थित श्री चेतन ज्योति आश्रम में यज्ञ, पाठ एवं पूजा-अर्चना करने के साथ प्रारम्भ हुई इस भव्य शोभायात्रा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र रहे।
साकेतवासी परम पूज्य श्री मज्जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री हंसदेवाचार्य जी महाराज के शिष्य महंत लोकेश दास जी महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी महाराज, महंत ऋषीश्वरानंद जी महाराज, महंत श्री दुर्गादास जी महाराज, बाबा हठयोगी जी महाराज, संत आशुतोष जी महाराज, महंत श्री प्रेमानंद शास्त्री जी महाराज, महंत श्री शिवानंद जी महाराज एवं श्री सतीश भगत जी आदि संत-महात्माओं के आशीर्वाद से निकली। इस शोभायात्रा में सोनीपत के सांसद सतपाल ब्रह्मचारी, श्री मां गंगे सावन जोत समिति, पानीपत के प्रधान सुभाष गुलाटी, महासचिव विपिन चावला, कोषाध्यक्ष यश माटा, संयोजक सुरेश कामरा (भोला) एवं हरीष काठपाल, वीरेंद्र सलूजा पानीपत, गुलशन क्वात्रा शाहबाद, सुरेश आनंद यमुनानगर, विनोद पाहवा, अजीत छाबड़ा, वेदप्रकाश खुराना, हरभगवान छाबड़ा, पी.आर. गुलाटी चंडीगढ़, राहुल गुलाटी गुरुग्राम आदि गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। बाद में, सभी अतिथियों एवं अन्य श्रद्धालुओं ने हर की पौड़ी पर जाकर आरती के साथ वार्षिक सावन जोत महोत्सव का समापन किया।
संत-महात्माओं और पंजाबी समुदाय के प्रतिनिधियों के आह्वान पर अशोक मेहता ने कहा कि पद्मश्री विजय चोपड़ा जी के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय पंजाबी महासभा देशभर के पंजाबी समुदाय को एकजुट करने की मुहिम चलाई जाएगी। उन्होंने कहा कि पंजाबी समुदाय का इतिहास बहुत गौरवशाली है। भारत-पाक विभाजन के दौरान शायद ही कोई परिवार ऐसा रहा हो, जिसने अपने किसी सदस्य को न खोया हो।
अशोक मेहता ने कहा कि सनातनी परम्परा में सावन का पवित्र महीना भगवान शिव और शक्ति को समर्पित माना जाता है। इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। देश के विभिन्न भागों से शिवभक्त गोमुख, गंगोत्री एवं हरिद्वार आदि स्थानों से अपनी कांवड़ में गंगाजल लेकर शिवालयों में जलभिषेक करते हैं। शायद ऐसा ही भाव वर्तमान पाकिस्तान के मुल्तान में रहने वाले लाला रूप चंद मुल्तानी जी और अपने साथियों के मन में आया होगा, जिसके चलते उन्होंने मुल्तान से पैदल ही हरिद्वार पहुंचकर मां गंगा में ज्योत प्रज्वलित करने की परम्परा शुरू की। तब इसे ‘मुल्तान सावन जोत’ के रूप में जाना जाता था। उस समय, यह परम्परा शुरू करने का उद्देश्य मुल्तान क्षेत्र को बाढ़ एवं तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाना था।
अशोक मैहता ने बताया कि भारत-पाक विभाजन के बाद इस सावन जोत का मुख्य केंद्र पानीपत, सोनीपत, करनाल और दिल्ली बन गए और श्री मां गंगे सावन जोत समिति, पानीपत के बैनर तले श्रद्धालुओं द्वारा हर वर्ष मां गंगे सावन जोत महोत्सव मनाया जाने लगा। भगवान शिव और गंगा मैय्या को समर्पित यह महोत्सव न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारत-पाक विभाजन के बावजूद हमारी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का जरिया भी है।
इससे पूर्व, चेतना ज्योति आश्रम के महंत ऋषीश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि संघ में शक्ति होती है, इसलिए महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते अशोक मेहता को देशभर के तमाम पंजाबी समुदाय को एकजुट करने का बीड़ा उठाना चाहिए। महंत लोकेश दास जी महाराज ने श्रद्धालुओं का आह्वान किया कि हमें ज्ञानी एवं अच्छे संत-महत्माओं से कथा करवानी चाहिए और कथा के नाम पर चुटकुलेबाजी करने वालों से परहेज करना चाहिए। सोनीपत के सांसद सतपाल बह्मचारी ने कहा कि 2003 में जब सावन जोत महोत्सव पुन: शुरू किया गया तो सरकार से अनुमति मिलने में बहुत समस्या पैदा हुई, लेकिन अब सबका बहुत सहयोग मिल रहा है।
महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी महाराज ने कहा कि लाला रूपचंद जी द्वारा मुल्तान से सावन के महीने में ही जोत लेकर आने का भी वैज्ञानिक पक्ष है। उन्होंने बताया कि हर की पौड़ी का असली नाम ब्रह्मकुंड है, क्योंकि इस स्थान पर सबसे पहले ब्रह्मा जी ने स्नान किया था। स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु अक्सर गंगा जी में पहले पैर डाल देते हैं, लेकिन खुद भगवान शिव ने गंगा मैय्या को शिरोधार्य किया, इसलिए हमें भी स्नान से पहले गंगा जल को अपने सिर में डालना चाहिए।