-बिना किसी जरुरत के लाखों रुपये का बजट फूंका जा रहा है स्पीड ब्रेकरों पर, ब्रेकर पर पैसे खर्च विकास को लगाई जा रही है ब्रेक
ग्राम पंचायतों में स्पीड ब्रेकर लगाने के नाम पर बडा गोलमाल हो रहा है। गांवों के अंदर बिना जरुरत के ब्रेकर लगाए जा रहे हैं इसके अलावा इनके मार्किट रेट से चार से पांच गुणा अधिक रेट पर ब्रेकर लगा विकास के नाम पर आए बजट को ब्रेक लगाई जा रही है। जिला भर में कुछ फर्में इस काम में लगी हुई है, इस काम की न कोई पैमाइश हो रही है न ही कोई एमबी भरी जा रही है, न कोई तकनीकी अनुमति न कोई टेंडर यानी पंचायत खजाने को सीधा सीधा चूना लगाया जा रहा है।
ग्राम पंचायतों में बहुत समय पहले स्ट्रीट लाइटस व डस्टबिन लगाने का खेल चला था, जिसमें बिना किसी अनुमति के कई-कई गुणा बिल बनाकर चांदी कूटी गई थी। जिसकी प्रदेश स्तर पर विजिलेंस जांच शुरु हो गई थी, इसके बाद इस धंधे पर लगाम लग गई मगर अब पंचायत की गलियों में स्पीड ब्रेकर आदि लगाने का नया खेल शुरु हो गया है। यानी विकास के लिए आए पैसे से ब्रेकर लगा कर विकास को ब्रेक लगाई जा रही है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि इस काम में मोटा खेल चलता है। ब्रेकर लगाने का यह कार्य प्रति मीटर के हिसाब से वसूला जाता है, जिसकी मार्किट कीमत 400 से 500 रुपये प्रति मीटर के हिसाब से हैं। जबकि पंचायतों में इसके चार से पांच गुणा अधिक बिलिंग की जा रही है, यानी एक ब्रेकर को 2000 से 2200 रुपये प्रति हिसाब से लगाया जा रहा है।
पंचायतों में कितने मीटर यानी कितनी लंबाई के ब्रेकर आदि लगाए गए इसकी न तो टेक्निकल विभाग यानी जेई आदि से पैमाइश होती है न ही इसकी एमबी तैयार की जाती है। कुछ फर्में पंचायतों में दांव पेंच लगा कर कोटेशन आदि के माध्यम से यह कार्य करती हैं। जिसमें लाखों रुपये का बजट निकाला जा रहा है, जबकि जानकार बताते हैं कि बिना किसी अप्रूवल के इस तरह के काम नहीं किए जा सकते। अगर गलियों में कोई वाहन चालक इन ब्रेकरों से टकरा कर या उछल कर दुर्घटना का शिकार होता है तो इसकी जवाबदेही किसकी होगी, ओर इस घटना की एफआईआर किसके नाम पर दर्ज होगी,ओर गांव की गलियों में इसकी जरुरत क्या है।
इस बारे में एक्सपर्ट व लोकल आडिट विभाग के पूर्व आडिटर अशोक कुमार का कहना है कि बिना अनुमति के इस तरह के कार्य नहीं किए जा सकते। इस तरह के कार्यों के लिए सरकार की अनुमति लेना जरुरी है। पंचायतें सरकार से मिलने वाले फंड को सरकार की हिदायतों व नियमों अनुसार ही खर्च सकती है। अगर कहीं पर ऐसा हो रहा है तो वह पूरी तरह से गलत है व जांच का विषय है ओर अगर अस्पताल, स्कूल या किसी अन्य जगह पर स्पीड ब्रेकर की आवष्यकता है तो जिला स्तर पर बनी रोड सेफ्टी कमेटी से इसकी अनुमति आवष्यक है
जांच करवा कर कार्रवाई करेंगे: डीडीपीओ
इस बारे में डीडीपीओ नरेंद्र कुमार ने बताया कि काफी समय पहले इस तरह की शिकायतें आई थी, जिसके बाद इस तरह के कामों को रोकने के आदेश जारी किए गए थे, उसके बाद कहीं से कोई शिकायत या जानकारी नहीं आई, अगर यह काम अब भी चल रहा है तो वह इसका पता करवा कर कार्रवाई करेंगे।