यमुनानगर। सबडिविजन बिलासपुर के रणजीतपुर एरिया में पड़ने वाल धनौरा गांव के रकबे से गुजरने वाली नदी में लगातार अवैध खनन हो रहा है। यह फारेस्ट डिपार्टमेंट का सेक्शन चार- पांच का नोटिफाइड एरिया भी पडता है जिसमें खनन तो दूर की बात खेती तक नहीं की जा सकती। उसके बावजूद यहां पर पिछले डेढ़ दो माह से अवैध खनन हो रहा है। इस नदी क्षेत्र से निकलने वाले खनिज भटटूवाला की पंचायती जमीन के आस-पास लगे प्लाटों पर जा रहा है जहां से क्रशिंग व स्क्रीनिंग करके इसे बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है।
बीते लगभग एक दशक से रणजीतपुर एरिया पर जैसे खनन माफिया की नजर पड़ी वैसे ही इस एरिया में खनिज लूट चालू हो गई। किसी नियम कानून को यहां पर नहीं माना जा रहा है। भटटूवाला की पंचायती जमीन हो या प्राइवेट लैंड या फिर धनौरा उसके आस-पास की जमीन सब जगह अवैध खनन का खुला खेल चल रहा है। खनन चोर किसी भी एरिया को बक्शने के मूड में नही है। वहीं अवैध खनन के इस खेल में खनन विभाग की इतनी नजरें इनायत है कि सब कुछ देख कर वह खामोश है। बताया जाता है कि इस पूरे एरिया में वीआईपी लोग इस धंधे में जुड़े है जिसमें राजनीतिक लोगों के अलावा ब्यूरोक्रेसी से जुड़े लोगों की भी हिस्सेदारियां बताई जाती है, हालांकि यह जांच का विषय है।
भटटूवाला की पंचायती जमीन से होकर जाता है धनौरा के रकबे में पड़ने वाली नदी मे यह रास्ता
जिस साइट पर अवैध खनन हो रहा है वह साइट धनौरा नदी में पड़ती है, हालांकि यह प्राइवेट लैंड है लेकिन यहां पर माइनिंग की अनुमति नहीं है। इसका पहला कारण यहां पर कोई खनन घाट नहीं है। वहीं दूसरी सबसे बड़ी बात यह पूरा एरिया फारेस्ट के सेक्शन चार व पांच के तहत नोटिफाइड भी है। जिसके तहत माइनिंग तो दूर की बात खेती भी नहीं की जा सकती है। इस नोटिफाइड एरिया का मतलब है कि यहां पर आईएफए के सभी कानून लागू होते हैं। मगर इसके बावजूद यहां पर अवैध खनन हो रहा है।
रेंज अधिकारी अजय नैन का कहना है कि उनको भी इसका पता चला था तो उन्होंने इसकी जानकारी ली कि जिस एरिया में यह अवैध खनन हो रहा है वह नोटिफाइड एरिया से बाहर है, मगर यह उनके एरिया के नजदीक होने की वजह से उन्होंने वहां पर अवैध खनन रुकवा दिया था। मगर विभाग के ही पुराने स्टाफ व जो यहां पर पहले डयूटी कर चुके है उनका कहना है कि जिस क्षेत्र में खनन हो रहा है वह नोटिफाइड एरिया केअलावा उसके आस-पास का एरिया है, यानी दोनों जगह अवैध खनन हो रहा है। नदी में अवैध खनन के निशान कभी भी देखे जा सकते है। हालांकि बारिश होने पर या पहाड़ी क्षेत्र से पानी आने के बाद यह निशान मिट जाते है मगर अवैध खनन तो हो ही रहा है। हालांकि वन विभाग से भी बड़ी डयूटी इस एरिया में अवैध खनन रुकवाने की खनन विभाग की है मगर खनन विभाग की खनक तो कहीं पर दिखती ही नहीं है।
माइनिंग आफिसर्स या इंस्पेक्टर्स से क्यों नहीं होती रिकवरी
कई विभागों में रेवेन्यू लास होने पर संबधित अधिकारियों व कर्मचारियों से रिकवरी होती है मगर इस तरह से करोड़ों के रेवेन्यू लास की रिकवरी खनन अधिकारियों से आखिर क्यों नही होती है। जिनको अवैध खनन रोकने के लिए सरकारी खजाने से लाखों रुपये सैलरी दी जाती है। जब वह अपनी डयूटी सही से नहीं निभा रहे तो आखिर उनसे रिकवरी क्यों नहीं होती है, सबसे बड़ी बात है कि इस विभाग के अधिकारी कर्मचारीअवैध खनन की सूचना देने वालों का फोन नहीं उठाते ताकि कोई कार्रवाई न करनी पड़े।
बताया जाता है यमुनानगर में माइनिंग इंसपेक्टर्स के कई पद है, इसके बावजूद भी पिछले तीन चार साल से इस पद पर दो तीन कच्चे कर्मचारियों की डयूटी लगाई हुई है। जबकि यमुनानगर माइनिंग के लिहाज से हाईली सेंसटिव रेड जोन में आता है, यानी खनन विभाग कच्चे कर्मचारियों के दम पर अवैध खनन रोकने की आस लगाए बैठा है। इस बारे में जब खनन अधिकारी से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।



