• विभाग का कहना है कि पत्थर पूरा नहीं हुआ तो काम नहीं शुरु हो पाया

यमुनानगर। जिस जमीन को बचाने के लिए मानकपुर के समीप पिरथीपुर में 1400 फीट क्रेट वायर या स्टोन स्टेनिंग 30 जून तक लगाई जानी थी न ही वहां पर क्रेट वायर लगाए गए न ही वहां पर जमीन बची है। कइ एकड़ जमीन सिंचाई विभाग व एजेंसी की लापरवाही की वजह से नदी के बहाव में बह गई। किसानों का कहना है कि वह सिंचाई विभाग के दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर थक गए। जिनके पास एक या दो एकड जमीन थी उन्हें तो शायद अपनी जमीन भी नदी में भराव करके दोबारा चालू करनी पड़ेगी। हालात यह है कि आज तक वहां पर पत्थर का स्टाक भी पूरा नहीं हुआ है ओर पत्थर रिलीज करना तो दूर की बात है। ऐसे में आखिर लाखों रुपये के टेंडर करने का क्या लाभ है।

सिंचाई विभाग के बाढ़ बचाव से होने वाले काम कहीं तो अधूरे है तो कहीं पर शुरु नहीं हुए। ऐसी ही हालत पिरथीपुर के समीप पथराला नदी में होने वाले काम की है। यहां पर आज तक पत्थर का स्टाक भी पूरा नहीं हो पाया, मगर विभाग के अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।  जिस नुकसान न होने के लिए यह टेंडर दिया गया वह नुकसान भी हो गया। अब अगर यह काम फ्लड सीजन के बाद होगा तो आखिर हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा।

किसान रणदीप, रमेश व कुलदीप आदि ने बताया कि इस बार उनकी कई एकड़ जमीन पथराला नदी के बहाव में बह गई। यहां पर क्रेट वायर आदि लगाए जाने थे, जिसके लिए पत्थर मंगाया गया, मगर पत्थर पूरा नहीं हो पाया। इसके बाद एक दो बारिश में ही उनके खेतों में कटाव हो गया व उनकी फसल पापुलर आदि नदी में बह गए। उन्होंने कई बार सिंचाई विभाग के अधिकारियों के चक्कर काटे कि काम जल्दी जल्दी शुरु करवाओ तो कोई सुनता नहीं था। जेई से पूछते थे तो वह एक्सईएन के पास भेज देता था ओर एक्सईएन से पूछा तो उन्होंने एसई के पास भेज दिया। अब काफी जमीन नदी में बह चुकी है उनकी मांग थी कि जो भी पत्थर मौके पर पड़ा है उतना ही काम करवा दो मगर वह भी कोई नहीं करवा रहा। जिस तरह नदी का कटाव जारी हो चुका है यदि दोबारा से तीन चार दिन बारिश हो गई तो बाकी जमीन भी बह जाएगी।
उन्होंने कहा कि विभाग की जिम्मेदारी है कि जिस एजेंसी को काम दिया उससे समय पर काम पूरा करवाएं। मगर कोई नहीं सुन रहा है। केवल फसल बह जाए तो चल जाता मगर जब जमीन ही बह गई तो वह जमीन कहां से लाएंगे।

आखिर क्यों नहीं तय होती एजेंसियों की जवाबदेही

बाढ़ राहत कार्यों के लिए जो एजेंसियां कार्य कर रही है आखिर उनकी जवाबदेही क्यों तय नहीं होती है। टेंडर लेने से पहले एजेंसी को पता होना चाहिए कि रा मैटिरयल या पत्थर आदि कहां से लाना है। अगर उसके पास अपने रिर्सोस हीं नहीं है तो एजेंसिया टेंडर क्यों एप्लाई करती है। कई एजेंसियों ने समय से पत्थर का अरेंजमेंट कर लिया था आखिर बाकी एजेंसियां क्यों नहीं कर रही।ऐसी हालत में विभाग को ऐसी एजेंसियों को ब्लैकलिस्टेड करना चाहिए या उनकी सिक्योरिटी राशि जब्त करनी चाहिए आखिर नुकसान होने के बाद काम करने का मतलब क्या रह जाता है। ऐसा करने के बजाय अधिकारी एजेंसियों को बचाने का प्रयास क्यों करते हैं।

जिन साइटस पर कुछ समय पहले नुकसान हुआ व वहां पर कच्चे काम यानी मिटटी के बैग आदि लगवाए गए । सूत्र बताते है कि उसके लिए विभाग ने अलग से बजट बनाया है यानी एक ओर टेंडर कर दिया एजेंसी ने काम नहीं किया वह टेंडर तो ज्यों का त्यों है बाकी मिटटी के बैगस आदि के लिए अलग से बजट खर्च करना पूरी तरह से गलत है। जिस एजेंसी ने काम नहीं किया उसको जो राशि दी जानी है उसी एजेंसी के खाते से  इन कामों की राशि भी काटी जानी चाहिए।

इस बारे में जब कार्यकारी अभियंता विनोद कुमार से पिरथीपुर में होने वाले काम के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि पत्थर पूरा न होने से उसे रिलीज नहीं किया गया। इसकी वजह से ही काम चालू नहीं हो पाया जब उनसे पूछा गया कि इस बारे में क्या एजेंसी की सिक्योरिटी राशि जब्त करने का प्रावधान है या कोई ओर कार्रवाई की जाती है तो उनका कहना था कि लिक्वीडिटी डैमेज काटा जाता है।

 

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